था कभी गुलज़ार, अब बंजर हूँ मैं

था कभी गुलज़ार, अब बंजर हूँ मैं इक पुरानी क़ब्र का पत्थर हूँ मैं   क़तरे-क़तरे के लिये भटका हूँ पर लोग ये कहते हैं कि सागर हूँ मैं   अब तो तनहाई भी है, तन्हा भी हूँ अब तो पहले से बहुत बेहतर हूँ मैं   टूटते पत्ते ने ये रुत से कहा आनेवाली … Continue reading था कभी गुलज़ार, अब बंजर हूँ मैं